एफ.एस.एस. अधिनियम, 2006 की धारा 28(1) में विनिर्दिष्‍ट है कि यदि कोई खाद्य कारोबारी यह मानता है या उसका यह विश्‍वास है कि कोई खाद्य जो उसने प्रसंस्‍कृत किया है, विनिर्मित किया है या संवितरित किया है, इस अधिनियम अथवा इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों या विनियमों के अनुपालन में नहीं है, तो वह तुरन्‍त प्रश्‍नाधीन खाद्य से बाजार और उपभोक्‍ताओं से खाद्य की पुन: प्राप्‍ति करने के लिए कारणों का उल्‍लेख करते हुए खाद्य की पुन: प्राप्‍ति करने के लिए प्रक्रिया प्रारंभ करेगा और इस संबंध में सक्षम प्राधिकारी को सूचित करेगा।  

पुन:प्राप्‍ति को खाद्य श्रृंखला के किसी भी चरण से खाद्य उत्‍पादों को हटाने के लिए की जाने वाली किसी कार्रवाई के रुप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें उपभोक्‍ता के धारणाधिकार में ऐसे खाद्य पदार्थ जिनसे लोक स्‍वास्‍थ्‍य को कोई खतरा हो अथवा जिनसे अधिनियम अथवा उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों अथवा विनियमों का उल्‍लंघन होता हो, सम्‍मिलित है। खाद्य उत्‍पादों की पुन:प्राप्‍ति उद्योग, सरकार के सामान्‍य और उपभोक्‍ता के विशेष हित में है। पुन: प्राप्‍ति उपभोक्‍ताओं को समान रुप से संरंक्षणप्रदान करने में सक्षम है लेकिन सामान्‍यतया यह औपचारिक रुप से से किए जाने वाले प्रशासनिक अथवा सिविल प्रकार की कार्रवाई करने की तुलना में अधिक कुशल और सामयिक कार्रवाई है विशेषरुप से जब खाद्य उत्‍पाद व्‍यापक वितरण हो गया हो।